कौन थे चंपा मेथी | Champa Methi Biography In Hindi

चंपा और मेथी राजस्थानी युगल कलाकर थे। इनके द्वारा गाये गए गीतों को इन्होंने ही लिखा, संगीतबद्ध किया। अपने समय की सुपरहिट जोड़ी की प्रसिद्धी मारवाड़ में फिल्मी हीरो-हीरोइन से अधिक थी। इनकी सुरीली आवाज के जादू में मारवाड़ के हर तबके के लोग झुमें है। राजस्थानी लोक संगीत के सिरमौर चंपा-मेथी के गाये गाने यहां के लोगों के जीवन से जुड़े हुए हैं। आप आज भी उनके संगीत के जादू में यहां के लोगों को बंधे हुए पाओगे।

कौन थे चंपा मेथी | Champa Methi Biography In Hindi
चंपा और मेथी

चंपा मेथी जीवन परिचय

चंपा मेथी राजस्थान के जोधपुर के निकटवर्ती गांव आगोलाई के रहने वाले थे। चंपालाल जाति से ढोली (भीलों के राव) थे और मेथी इनकी पत्नी थी। चंपालाल ने दो शादियां की थी जिनसे इन्हें कुल 6 संताने हुई। चंपालाल के पुत्र दिलीप ने बताया कि 40 की उम्र में माता-पिता में ठन गई थी तो माता ने यूं ही गुस्से में कह दिया ‘जे कठई मिले है तो लाओ परा दूजी’! बस इतनी बात पर बिफरे ने चंपालाल दूसरी शादी जालोर के मांडवला की रहने वाली भगवती देवी से कर ली। उस वक्त चंपालाल का जीवन ढलान की ओर था। उन्हें टीबी की बीमारी ने घेर लिया। चंपा दूसरी शादी के बाद मुश्किल से दो बरस जी पाए थे। सन 2000 में इनकी मृत्यु हो गई।

चंपा-मेथी का गाया गीत उन्हीं पर सच्च साबित हुआ और टूट गई जोड़ी

यूं तो चंपा-मेथी की जोड़ी ने बहुत गीत गाए लेकिन एक गीत उन्हीं के जीवन पर लागू हो गया। उस गीत के गाये बोल सच्च हुए और समय की सुपरहिट जोड़ी टुट गई। वह गीत था ‘मोर बोले हो सिरोही की पहाड़ी में…. छोड़ मत जाइजै रे….’ चंपा ने सिरोही से सटे जालोर जिले की रहने वाली अपनी ही जाती की भगवती देवी से शादी करली और मेथी को थोथी थळ्वट‌ में छोड़ दिया। इस शादी के बाद चंपा-मेथी की जोड़ी टुट गई फिर जीते जी कभी दोनों ने साथ कोई गाना नहीं गाया। मेथी विरह में अलग रहने लगी और चंपा टीबी से चल बसे।

मेथी अपने बेटे के साथ फिर से गाने लगी, कटार मारकर उनकी हत्या कर दी गई

चंपा मेथी की जोड़ी जब टुटी‌ तो परिवार के लिए वो कठिन समय था। चंपा के गुजर जाने के बाद मेथी की आवाज़ फिर से लोगों तक पहुंचनी शुरू हुई। अब वो अपने बड़े बेटे दिलीप के साथ गाने लगी। लेकिन उनके ही मंडली के सहयोगी रहे मदनलाल को यह बात रास नहीं आई। सन 2001 में मदनलाल ने कटार/गुप्ति मारकर मेथी की हत्या कर दी। और चंपा के बाद मेथी की सुरीली आवाज़ हमेशा-हमेशा के शांत हो गई। अपने जीवनकाल में चंपा-मेथी की जोड़ी ने संगीत का जो जादू बिखेरा था उसे आज भी मारवाड़ के लोगों में महसूस किया जा सकता है।

चंपा मेथी से मिलने आए थे T-Series मालिक गुलशन कुमार

चंपा-मेथी की जोड़ी का आज भी मारवाड़ में कोई विकल्प तैयार नहीं हुआ। इनके गाये गीत यहां के लोगों के रूह से जुड़े हुए हैं प्रसिद्धी के मामले में भी मारवाड़ क्षेत्र में लता-रफी से कम नहीं थे। उस दौर में शोशल मीडिया का शौर नहीं था बस टेप कैसेट्स चलती थी। कहते हैं जितनी टेप कैसेट्स रिकॉर्ड होती थी उनमें चंपा मेथी की सर्वाधिक होती थी। लोक संगीत के क्षेत्र में इस जोड़ी की प्रसिद्धी देख टी-सीरीज के मालिक गुलशन कुमार मुंबई शहर से चलकर इन्हें मिलने आए थे। कहते हैं गुलशन कुमार ने जब चंपा मेथी के गाने सुने और इनसे मिले तो जोड़ी के मुरीद हो गए। चंपा-मेथी को मुंबई आने और टी-सीरीज के साथ गाने का न्योता देकर लौटे। लेकिन दुर्भाग्यवश 12 अगस्त, 1997 को गुलशन कुमार की कुछ लोगों द्वारा हत्या कर दी गई। ऐसे में चंपा मेथी न तो मुंबई जा पाए और न ही टी-सीरीज के साथ गाना नहीं गा पाए। अगर टी-सीरीज के साथ इनका अनुबंध होता तो इनके गीतों को नया आयाम तो मिलता ही साथ ही परिवार के हालत भी सुधरते।

यहां के लोगों के जीवन, संस्कृति, गाथाओं और त्योहार व किसानी को गीतों से किया सजीव

जब कोई सोचता है आखिर क्यों चंपा मेथी की जोड़ी ने यहां इतनी प्रसिद्धि पाई जितनी किसी और कलाकार को नसीब नहीं हुई। तो सबसे पहले उबर कर आपके सामने आएगी इस जोड़ी की सुरीली आवाज़.. जिसको सुनकर दिल को सुकून मिलता है। भले कोई मारवाड़ी न समझता हो पर इन्हें सुनकर इनकी आवाज़ और संगीत से प्रभावित अवश्य होगा। दूसरा इनके गानों के भाव जो मारवाड़ के जन-जीवन और यहां की संस्कृति से जुड़े हुए होते थे। इस जोड़ी ने मारवाड़ के हर तबके के सुख-दुख, रीति-रिवाज, तीज-त्योहार, खेती-बाड़ी आदि को भावों में पिरोया और गाया। इतना ही नहीं गौरव-गाथाओं व उस समय के हाशिए के लोगों के जीवन को गायन के माध्यम से आमजन को बताया।

चंपा मेथी की संगीत मंडली में ये थे शामिल

चंमा मेथी की संगीत मंडली के आधार स्तम्भ वो दोनों स्वयं थे। गाने की रचना व संगीत (धुन) स्वयं बनाते और जुगलबंदी में गाते थे। चंपालाल हार्मोनियम बजाते और मेथी ढोलक बजाती थी। इनके द्वारा लिखी गई सभी रचनाएं कालजयी है जिन्हें दोनों ने गाकर अमर कर दिया। इनकी मंडली में चंपा के भाई जगमाल और मेथी की बहन भूरी जो अच्छी गायिका थी।

पाली की रहने वाली मेथी की भुआ गवरी देवी जानी मानी मांड गायिका हुई जिनके कार्यक्रम आकाशवाणी से निरंतर प्रसारित होते रहे हैं।

संगीत सफर

इनका गाना गाकर गुजर बसर करना इनका पुस्तैनी धंधा था। गांव और बस्टेंड पर गाना गाया करते थे। सर्वप्रथम महा मंदिर जोधपुर में जागरण प्रोग्राम में रामनिवास राव के साथ गाने चंपालाल को मौका मिला। रामनिवास इनकी आवाज़ से प्रभावित हुए और अपने प्रयासों से सर्वप्रथम वर्ष 1981 में चंपालाल को राम-रहीम कैसेट्स में मौका दिलवाया। जहां इनके गाने का सफर “रामलाल मुंशी” से शुरू हुआ जो जीवनपर्यन्त अनवरत रहा। चंपा-मेथी ने 100 से अधिक रचनाएं स्वयं रची और लगभग 700 से अधिक गीत/भजन/गाथाओं गाकर अमर किया।

अब चंपा मेथी के परिवार की हालत दयनीय, लोगों ने दिल खोलकर की मदद

राजस्थानी लोक संगीत के सिरमौर चंपा-मेथी के परिवार की वर्तमान हालात दयनीय है। बेटे उनकी दूसरी पत्नी सहित टूटी-फूटी छपरी में दिन तोड़ रहे हैं। चंपा-मेथी के गाए गानों पर लाखों कमाने वाली म्यूजिक कम्पनियों ने उनके जाने के बाद परिवार की सुुदबुध तक नहीं ली और ना सरकार ने उन्हें संगीत सम्मान देने व संगीत कम्पनियों से रॉयल्टी दिलवाने में रुचि दिखाई। यहां के लोग भी यही समझते रहे कि चंपा-मेथी के परिवार में कोई नहीं है लेकिन जब कुछ युट्युबर चंपा-मेथी के घर तक पहुंचे तो वर्तमान स्थिति सबके सामने आई। मदद का हाथ लेकर पहुंचे युट्युबरों की मदद से लोगों ने दिल खोलकर परिवार को सहयोग किया।

चंपा-मेथी की विरासत को आगे बढा रहे हैं बेटा-बेटी

कहते हैं दिन सबके आते हैं। दशकों से यहां के लोगों के दिलो-दिमाग पर संगीत से राज करने वाली जोड़ी ‘चंपा-मेथी’ का परिवार दयनीय स्थिति में गुजर-बसर कर रहा है। पर अब उनके परिवार के सुनहरे दिन फिर से लौट आने को है। युट्युबरों की मदद से लोगों ने की मदद अब युट्युब बना रोजी-रोटी का सहारा। बेटे की आवाज़ भी चंपा से कम नहीं तो बेटी भी मेथी की आवाज़ से मेल खाने को प्रयासरत है।अगर आप भी इस परिवार के मददगार बनना चाहते हैं तो आपको देना कुछ भी नहीं है बस YouTube पर जाइए और उनके कुछ गाने सुनिये। दिल को सुकून भी मिलेगा और चंपा-मेथी के परिवार की मदद भी होगी।

इस पोस्ट में हमने राजस्थानी लोक संगीत की सिरमौर जोड़ी चंपा मेथी के संगीत सफर और
जीवन से जुड़े अनछुए पहलुओं के बारे में विस्तृत जानकारी साझा की है। Khabar dekhlo पर समाचारों के इतर जीवन संस्कृति केटेगरी में लोक संगीत के गायकों के जीवन पर विस्तृत श्रृंखला लिखी जाएगी। क्योंकि जीवन में जिन्हें हम सुनते आए हैं और जिन्हें सुनकर हमारे दिलो-दिमाग को सुकून मिलता ऐसे लोगों से जुडाव सिर्फ संगीत तक ही नहीं होता हम उनके बारे में जानने इच्छुक‌ रहते हैं। आशा है आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई है।

लेख को अंत तक पढने के लिए दिल से आभार, नवीनतम समाचार अपटेड के लिए जुड़े रहे Khabar Dekhlo के साथ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.