संतुलित पर्यावरण मानव जीवन का आधार है। आज विश्व भर के वैज्ञानिक पर्यावरणीय बदलावों को लेकर चिंतित है। सरकारें पर्यावरण संरक्षण को लेकर विभिन्न योजनाएं संचालित कर रही है लेकिन योजनाओं के इंप्लीमेंटेशन के अभाव में समस्या जस की तस बनी हुई है। क्योंकि सरकार योजना/कानून बना सकती है पर उस योजना/कानून का प्रभाव सामाजिक स्तर पर लागू होने के पश्चात ही दिखता है। पर्यावरण संरक्षण व सम्पोषण की सुदीर्घ सामाजिक परियोजना की नींव मध्य सदी के महान संत सद्गुरु जांभोजी ने ‘बिश्नोई समाज’ की स्थापना कर रखी। पर्यावरणीय समस्याओं के निदान को बिश्नोईयों की मनोवृति से जोड़ा। बिश्नोईयों ने अपने गुरु के संदेश को आदेश के रूप में माना और पर्यावरण संरक्षण को नियमित दिनचर्या का हिस्सा बनाया। तभी तो ‘खेजड़ली बलिदान’ में बढ़-चढ़कर भाग लेकर स्वयं कटकर भी असंख्य हरे वृक्षों को कटने से बचाया व भविष्य में हरे वृक्षों को न काटने का आदेश पारित करवाया। इस बलिदान में 363 स्त्री व पुरुषों ने देहिक आहुति दी। यह विश्व का एकमात्र ऐसा उदाहरण है जिसमें सैकड़ों लोगों ने मिलकर अपना बलिदान देकर भी वृक्ष बचाए। ऐसी अनेक घटनाएं इस बलिदान से पूर्व व बाद में घटित हुई जब बिश्नोइयों ने स्वयं कटकर भी वृक्षों को बचाया और इस परंपरा का निर्वहन आज भी बिश्नोई जन उतनी ही दृढ़ता से कर रहे हैं। वैश्विक कल्याण की भावना को अपने में समेटे गुरु जांभोजी की ‘पर्यावरणीय परियोजना’ भले ही सदियों से पर्यावरण संरक्षण में अपनी महती भूमिका निभाती आई हो लेकिन ना तो यहां की सरकारों ने इसे प्रसारित प्रसारित कर सामाजिक स्तर पर इंप्लीमेंटेशन में लाने का काम किया और न ही वैश्विक पटल पर उभार पाए। पर अब बिश्नोई स्वयं आगे बढ़कर अपनी गौरव परंपरा से देश और दुनिया को रूबरू करवा रहे हैं व इसमें सहभागी बनने को प्रेरित कर रहे हैं। शुरुआत जांभाणी साहित्य अकादमी ने देशभर में पर्यावरण सम्मेलन आयोजन कर की व अब वैश्विक पटल पर पहला अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन दुबई में सफलतापूर्वक आयोजित करवाकर अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा ने अपनी सहभागिता सुनिश्चित की है।

अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन दुबई में सफलतापूर्वक हुआ संपन्न
4 व 5 फरवरी को अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा, जांभाणी साहित्य अकादमी, जय नारायण विश्वविद्यालय और युएई के पर्यावरणीय संगठन GoumBook के संयुक्त तत्वाधान में अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन मरुस्थलीय देश दुबई के होटल ब्रीस्टल में आयोजित किया गया। देश व विदेश से लगभग 600 प्रतिभागियों ने इस सम्मेलन में भाग लेकर गुरु जांभोजी के सिद्धांतों, बिश्नोई समाज की जीवन शैली और पर्यावरण संरक्षण में योगदान व वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियां का जाम्भाणी जीवन पद्धति में निराकरण विषय पर चिंतन किया। इस सम्मेलन में फिल्म अभिनेता विवेक ओबरॉय से लेकर देश के जाने माने राजनीतिज्ञ फारूक अब्दुल्ला, गुरमीत सिंह सोढ़ीऔर शेख माजिद अल्ल मुला, दुबई और विभिन्न देशों से आए हुए पर्यावरणविदों ने बिश्नोई समाज के पर्यावरण सरंक्षण हेतु दिए गए बलिदानों और संरक्षण की प्रेरक का परंपरा को सराहा। गुरु जांभोजी के पर्यावरणीय सिद्धांतों को जीवन में अपनाने का संकल्प लिया। सम्मेलन में भारत व विभिन्न देशों के प्रवासी बिश्नोईयों ने भी बढ़ चढ़कर भाग लिया। सम्मेलन ने खूब सुर्खियां बटोरी, सम्मेलन में भाग लेने उपस्थित हुए लोगों के अलावा देश और विदेश से लाखों लोगों ने शोशल मीडिया के माध्यम पर लाइव के माध्यम से सम्मेलन के हर सत्र में अपनी सभागिता सुनिश्चित की।
कुलदीप बिश्नोई के सपने को लगे पर, रमेश बाबल के संयोजन में सफल अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन हुआ
बिश्नोई समाज के पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में दिए गई योगदान को वैश्विक पटल पर उभारने के उद्देश्य से समाज के बहुत से लोग किसी न किसी माध्यम से प्रयत्नशील है। इन्हीं प्रयत्नशील बिश्नोईयों में से एक रमेश बाबल है। बाबल के सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य को देखते हुए अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के अध्यक्ष देवेंद्र बुडिया ने NRI प्रकोष्ठ का गठन कर संयोजन की जिम्मेदारी सौंपी। रमेश बाबाल ने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और लगभग 1 वर्ष के अंदर ही समाज को अंतरराष्ट्रीय मंच प्रदान कर पर्यावरण सम्मेलन का सफलता पूर्ण आयोजन करवाया। पर्यावरण सम्मेलन का सपना अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के संरक्षक कुलदीप बिश्नोई ने बरसों पहले देखा था लेकिन किन्ही कारणों से ऐसा संभव नहीं हो पाया था।

NRI प्रकोष्ठ के उद्देश्य
प्रवासी बिश्नोईयों को एक मंच प्रदान करने और गुरु जांभोजी महाराज के संदेशों व बिश्नोई समाज की पर्यावरणीय परंपरा को विश्व में भर के लोगों के सामने रख पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य के साथ NRI प्रकोष्ठ का गठन हुआ।
शेख ने बिश्नोई समाज को दी 3.5 लाख स्क्वायर
इस पर्यावरणीय सम्मेलन में पधारे दुबई के शेख माजिद उल्ल मुला ने 3.5 लाख स्क्वायर फूट भूमि बिश्नोई समाज को देने का वादा किया जिस पर खेजड़ली के शहीदों की यादों को चिरस्थाई सहेजा जा सकेगा।
60 लोगों ने प्रस्तुत किए शोध पत्र
सम्मेलन में 60 लोगों ने जांभाणी जीवन पद्धति में वैश्विक पर्यावरण चुनौतियां का समाधान विषय अपने शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए विश्व को चेताया कि पिछले लगभग पचास सालों में प्रकृति का अंधाधुंध विनाश हुआ है, समय रहते हमने पर्यावरण संरक्षण के लिए गंभीर प्रयास नहीं किया तो धरती समस्त जीव प्रजातियां का जीवन खतरे पड़ जाएगा। संत समाज की गरिमामय उपस्थिति ने सम्मेलन को चार चांद लगाए।
सहज, सरल और सादगीपूर्ण जीवन के साथ हमें न्यूनतम सुविधाओं के साथ जीवन का अधिकतम आनंद मनाना होगा।
‘बिश्नोई रत्न’ चौधरी कुलदीप जी बिश्नोई
सरंक्षक,अखिल भारतीय बिशनोई महासभा
महासभा अध्यक्ष देवेंद्र बुड़िया ने यूएई सरकार से समाज के लिए पर्यावरण, व्यवसाय, रोज़गार में सहयोग आदि के लिए भी निवेदन किया। सम्मेलन में संबोधित करते हुए बुड़िया ने कहा अगर धरती पर जीवन को बचाना है तो जीवनशैली का बिश्नोई प्रतिरूप सबसे उपयुक्त है और विश्व को इसे अपनाना चाहिए।
पर्यावरण सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिभागियों ने दुबई पर्यटन कर लिया आनंद
पर्यावरण सम्मेलन में भाग लेने के लिए लोगों की उत्सुकता देखते बनी। अपने देश से दूर दुबई में आयोजित हुए इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए अपने आर्थिक खर्चे पर पहुंचे। सम्मेलन में भाग लेने के अलावा प्रतिभागियों को आयोजनकर्ताओं द्वारा दुबई शहर का भ्रमण करवाया गया। मीनिंग वर्ल्ड के रूप में विख्यात दुबई में लोगों ने डेजर्ट सफारी, कैनाल कुर्ज, समुद्री पर्यटन का लुफ्त उठाया और ग्लोबल विलेज व विश्व की सबसे बड़ी इमारत बुर्ज खलीफा आदि भ्रमण किया।
सम्मेलन का प्रारम्भ व समापन पौधोरोपण के साथ कर खेजड़ली शहीदों को श्रद्धांजलि दी
2 फरवरी को पर्यावरण सम्मेलन के उपलक्ष में दुबई शहर शारजाह में स्काईलाइन यूनिवर्सिटी के क्रिकेट मैदान में अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के अध्यक्ष देवेंद्र बुड़िया, जाम्भाणी साहित्य अकादमी की अध्यक्षा डॉ. श्रीमती इंद्रा बिश्नोई , गौंबूक NGO के फाउंडर तातियाना अंतोलिनी, विक्टोरिया स्पोर्ट्स अकादमी के शाकिर हुसैन, सम्मेलन के संयोजक रमेश बाबल के नेतृत्व में पर्यावरण प्रेमियों ने 363 खेजड़ी के पौधे लगाकर खेजड़ली शहीदों को श्रद्धांजलि दी व पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। इसी के साथ आयोजनकर्ताओं द्वारा 12 फरवरी को पौधारोपण किया।
संयोजक रमेश बाबल ने सभी विद्वानों, प्रतिभागियों और इस सम्मेलन को सफल बनाने हेतु परिश्रम करने वाले सभी लोगों का धन्यवाद और आभार व्यक्त किया।
ऐक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये सम्मेलन बहुत सफल रहा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत से लोगों को ये भी पता चला कि पर्यावरण की जो मुहिम गुरू जाँभो जी ने चलाई थी उसकी आज के समय में बहुत ज़्यादा जागरूकता की और धरातल पर कार्य करने आवश्यकता है